छत्तीसगढ़

जातीय भेदभाव के खिलाफ उठी आवाज, सामाजिक प्रतिनिधियों ने की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से निष्पक्ष जांच व सख्त कार्रवाई की मांग

बीजापुर(प्रभात क्रांति)। अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों ने देशभर में बढ़ते जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न की घटनाओं पर चिंता जताते हुए गुरुवार को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपाल को संयुक्त रूप से ज्ञापन सौंपा है।

ज्ञापन में कहा गया है कि भारत का संविधान समानता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है, किंतु हाल के समय में आरक्षित वर्गों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं। प्रतिनिधियों ने दलित मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंके जाने, डॉ. भीमराव अंबेडकर पर अभद्र टिप्पणी, वैज्ञानिक सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी, दलित आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या तथा बस्तर में निर्दोष आदिवासियों को माओवादी बताकर जेल भेजने जैसी घटनाओं को अत्यंत निंदनीय बताया।

समुदाय ने इन मामलों की उच्चस्तरीय जांच, दोषियों पर कठोर कार्रवाई और आरक्षित वर्गों की सुरक्षा हेतु विशेष निगरानी प्रकोष्ठ गठित करने की मांग की है। प्रतिनिधियों ने कहा कि संविधान की गरिमा बनाए रखना सभी का दायित्व है, और किसी भी नागरिक के साथ जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव अस्वीकार्य है। इस दौरान सर्व आदिवासी समाज के जग्गूराम तेलामी, कंवर समाज के कमलेश पैंकरा, तेलगा समाज के आदिनारायण पुजारी, परधान समाज के सकनी चन्द्रैया, महार समाज के अजय दुर्गम, कलार समाज के पी. वेंकट रमन्ना, हल्बा समाज बृजलाल पुजारी, गोंड समाज जनकलाल नेताम, अशोक तालांडी, रैमनदास झाड़ी, सतीश मंडावी, श्रवण सैंड्रा, अमित कोरसा, राकेश गिरी, सुनील गोरला सहित बड़ी संख्या में सामाजिक पदाधिकारी मौजूद थे।

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