दंतेवाड़ा जिला अस्पताल में आभा ऐप: सुविधा की जगह परेशानी, आदिवासी मरीजों की बढ़ी मुश्किले साथ ही अन्य लोगों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है… देखें वीडियों

दंतेवाड़ा(प्रभात क्रांति), केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के तहत शुरू किया गया आभा ऐप, जिसे मरीजों को स्वास्थ्य सेवाओं में आसानी और डिजिटल सुविधा प्रदान करने के लिए लाया गया था, दंतेवाड़ा जिला अस्पताल में मरीजों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। आदिवासी बहुल दंतेवाड़ा जिले में मोबाइल नेटवर्क की कमी, स्मार्टफोन की अनुपलब्धता और तकनीकी जटिलताओं के कारण यह ऐप मरीजों के लिए सुविधा के बजाय एक बड़ी बाधा बन गया है। ग्रामीण और आदिवासी मरीजों को इलाज के लिए रजिस्ट्रेशन टोकन पर्ची प्राप्त करने में घंटों इंतजार करना पड़ रहा है, जिससे उनकी परेशानियां और बढ़ गई हैं।
आभा ऐप: वादा सुविधा का, हकीकत परेशानी की
आभा ऐप, जिसे आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट (ABHA) के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) ने विकसित किया है, मरीजों को डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स तक आसान पहुंच, त्वरित रजिस्ट्रेशन और क्यूआर कोड आधारित पर्ची प्रणाली प्रदान करने का दावा करता है। देश के कई हिस्सों, जैसे ऋषिकेश के एम्स और गोरखपुर के सरकारी अस्पतालों में, इस ऐप ने मरीजों को लंबी कतारों से राहत दिलाई है। उदाहरण के लिए, एम्स ऋषिकेश में 3.2 लाख से अधिक मरीजों ने इस सुविधा का लाभ उठाया है, जहां क्यूआर कोड स्कैन कर मरीजों का रजिस्ट्रेशन मिनटों में हो जाता है।
लेकिन दंतेवाड़ा जैसे आदिवासी और सुदूर क्षेत्र में यह ऐप अपनी उपयोगिता साबित करने में नाकाम रहा है। जिला अस्पताल में हाल के दिनों में आभा ऐप के जरिए रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य करने की कोशिश ने मरीजों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। स्थानीय मरीजों और उनके परिजनों का कहना है कि तकनीकी बाधाएं और संसाधनों की कमी के कारण यह ऐप उनकी जरूरतों के अनुरूप नहीं है।
आदिवासी क्षेत्र में आभा ऐप की चुनौतियां
दंतेवाड़ा जिला छत्तीसगढ़ का एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जहां अधिकांश आबादी ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आती है। यहां आभा ऐप के सामने कई व्यावहारिक समस्याएं हैं:
- मोबाइल और स्मार्टफोन की कमी:* दंतेवाड़ा के अधिकांश आदिवासी परिवारों के पास स्मार्टफोन नहीं है। कई लोग बेसिक फीचर फोन का उपयोग करते हैं, जो आभा ऐप को सपोर्ट नहीं करता। एक स्थानीय मरीज, गंगा राम मरकाम, जो अपने बच्चे के इलाज के लिए जिला अस्पताल आए थे, ने बताया, “हमारे पास तो पुराना मोबाइल है, उसमें ऐप कैसे चलेगा? अस्पताल वाले कहते हैं ऐप से रजिस्टर करो, लेकिन हमारे पास स्मार्टफोन कहां से लाएं?”
- नेटवर्क की अनुपलब्धता – दंतेवाड़ा के ग्रामीण इलाकों में मोबाइल नेटवर्क की स्थिति बेहद खराब है। कई बार नेटवर्क पूरी तरह गायब रहता है, और अगर नेटवर्क उपलब्ध भी हो तो डेटा स्पीड इतनी धीमी होती है कि ऐप का उपयोग असंभव हो जाता है। जिला अस्पताल में रजिस्ट्रेशन के लिए OTP (वन-टाइम पासवर्ड) की जरूरत पड़ती है, लेकिन नेटवर्क की कमी के कारण OTP समय पर नहीं मिलता। एक अन्य मरीज, लक्ष्मी बाई, ने शिकायत की, “हम सुबह से इंतजार कर रहे हैं, OTP नहीं आया। बिना पर्ची के डॉक्टर नहीं देख रहे।”
- तकनीकी अज्ञानता – आदिवासी समुदाय में स्मार्टफोन और डिजिटल तकनीक का उपयोग सीमित है। अधिकांश मरीजों को ऐप डाउनलोड करने, रजिस्ट्रेशन करने या क्यूआर कोड स्कैन करने की प्रक्रिया समझ नहीं आती। अस्पताल में इस संबंध में सहायता के लिए पर्याप्त कर्मचारी भी उपलब्ध नहीं हैं, जिससे मरीजों को और परेशानी होती है।
- लंबा इंतजार और भीड़ – आभा ऐप के जरिए रजिस्ट्रेशन में देरी के कारण अस्पताल में लंबी कतारें लग रही हैं। जिन मरीजों के पास स्मार्टफोन या नेटवर्क नहीं है, उन्हें अन्य लोगों की मदद लेनी पड़ती है, जिससे प्रक्रिया और जटिल हो जाती है। कुछ मरीजों को तो कई घंटों तक इंतजार करने के बाद भी टोकन नहीं मिल पाता, जिससे वे निराश होकर लौट जाते हैं।
मरीजों की आपबीती: इलाज के लिए बढ़ा संकट
जिला अस्पताल में मरीजों की परेशानियां दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं। कांकेर गांव से आए मंगलू राम ने बताया, “मैं अपनी पत्नी का इलाज कराने सुबह 6 बजे से लाइन में खड़ा हूं। मोबाइल में नेटवर्क नहीं है, OTP नहीं आया। अब हमें कल फिर आना पड़ेगा।” वहीं, एक बुजुर्ग मरीज, सोनू कुंजाम, ने कहा, “पहले तो पर्ची काउंटर पर आसानी से मिल जाती थी। अब ये नया ऐप आया है, जिससे सब उलझन बढ़ गई है।”
महिलाओं और बच्चों के लिए स्थिति और गंभीर है। गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चों के साथ आए परिजन लंबे इंतजार के कारण परेशान हैं। एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता, रमेश ठाकुर, ने बताया, “यहां के लोग पहले ही स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। अब आभा ऐप की वजह से गरीब और अनपढ़ मरीजों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं।”
विश्लेषण: आभा ऐप की खामियां और क्षेत्रीय वास्तविकताएं
आभा ऐप का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं को डिजिटल और पारदर्शी बनाना है, लेकिन दंतेवाड़ा जैसे क्षेत्रों में इसकी लागू होने की प्रक्रिया में कई खामियां हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करने से पहले स्थानीय परिस्थितियों का आकलन जरूरी है।
*क्षेत्रीय असमानता:* शहरी क्षेत्रों और बड़े अस्पतालों में आभा ऐप की सफलता के उदाहरण हैं, लेकिन ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी इसे अप्रभावी बनाती है। दंतेवाड़ा में नेटवर्क कवरेज और स्मार्टफोन की पहुंच बढ़ाने की जरूरत है।
वैकल्पिक व्यवस्था का अभाव –
आभा ऐप को अनिवार्य करने से पहले मरीजों के लिए मैन्युअल रजिस्ट्रेशन की वैकल्पिक व्यवस्था रखनी चाहिए थी। वर्तमान में, जो मरीज ऐप का उपयोग नहीं कर पाते, उनके लिए कोई अन्य रास्ता नहीं है।
*जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी:* स्थानीय समुदाय को ऐप के उपयोग के लिए प्रशिक्षित करने और जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। अस्पताल में सहायता डेस्क या कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने से मरीजों की मदद हो सकती है।
*तकनीकी सुधार:* आभा ऐप को ऑफलाइन मोड में भी काम करने की सुविधा दी जानी चाहिए, ताकि नेटवर्क की अनुपलब्धता में भी रजिस्ट्रेशन संभव हो।
स्वास्थ्य विभाग का पक्ष
दंतेवाड़ा जिला अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि आभा ऐप को लागू करने का निर्देश राज्य और केंद्र सरकार से मिला है। एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया, “हम कोशिश कर रहे हैं कि मरीजों को कम से कम परेशानी हो। लेकिन नेटवर्क और संसाधनों की कमी के कारण कुछ दिक्कतें आ रही हैं। हम जल्द ही अतिरिक्त काउंटर और सहायता कर्मचारी उपलब्ध कराने की योजना बना रहे हैं।”हालांकि, मरीजों का कहना है कि ये उपाय अभी तक धरातल पर नहीं दिख रहे।
*निष्कर्ष:* डिजिटल सुविधा या तकनीकी बोझ?आभा ऐप का विचार भले ही क्रांतिकारी हो, लेकिन दंतेवाड़ा जैसे सुदूर और संसाधन-सीमित क्षेत्रों में इसकी लागू होने की प्रक्रिया ने मरीजों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। आदिवासी समुदाय, जो पहले ही स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच का सामना कर रहा है, अब तकनीकी बाधाओं से जूझ रहा है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस योजना को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाया जाए। जब तक बुनियादी ढांचा और जागरूकता का स्तर नहीं सुधरता, आभा ऐप जैसी डिजिटल पहलें सुविधा के बजाय परेशानी का कारण बनी रहेंगी।
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