बस्तर की परंपरा के नाम पर शोषण और पेड़ों का विनाश – लोकतंत्र में राजशाही का कोई स्थान नहीं

जगदलपुर(प्रभात क्रांति), एबोरिजिनल ट्राइब्स के प्रतिनिधि बस्तर माटी पुत्र महेश स्वर्ण “एबोरिजिनल ट्राइब्स” ने कहा है कि बस्तर में दशहरे के नाम पर 600 वर्षों से चली आ रही तथाकथित परंपरा आज केवल शोषण और प्राकृतिक विनाश का प्रतीक बन चुकी है।
उन्होंने कहा कि हजारों पेड़ों की बलि देकर, रथ निर्माण और रथ खींचने की परंपरा को “संस्कृति रूढ़ी और प्रथा”का नाम दिया जा रहा है, जबकि यह असल में जनता को गुलामी में रखने और राजशाही को बढ़ावा देने की चालाकी थी।
महेश स्वर्ण “एबोरिजिनल ट्राइब्स”ने सवाल उठाया कि जो राजा-महाराजा विदेश जाकर पढ़ाई करते रहे, उन्होंने बस्तर में एक भी स्कूल या कॉलेज क्यों नहीं खोला? क्यों उन्होंने शिक्षा की नींव नहीं रखी, जबकि आम जनता को केवल रथ, जुलूस और भात-बेगारी में उलझाए रखा गया?
उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह परंपरा आदिवासी समाज की असली परंपरा नहीं है। यह केवल राजशाही की परंपरा है। असली परंपरा हमारे गांवों की भाषा, बोली रूढ़ी प्रथा परम्परा,गीत-संगीत, रीति-रिवाज और प्रकृति संरक्षण है।
अंत में उन्होंने जनता से अपील की – “बस्तर का भविष्य रथ से नहीं, शिक्षा से बदलेगा। बस्तर का उत्थान पेड़ काटने से नहीं, पेड़ बचाने से होगा। बस्तर का स्वाभिमान राजा से नहीं, बस्तर की जनता से है।”