लंबी लड़ाई के बाद नक्सल मुक्त होने की ओर बढ़ता बस्तर, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के समक्ष 210 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण…देखे वीडियों

जगदलपुर (प्रभात क्रांति) । एक समय नक्सल गतिविधियों के गढ़ के रूप में पहचाने जाने वाला बस्तर अब धीरे-धीरे शांति और विकास की राह पर लौट रहा है। दशकों से चली आ रही हिंसा, भय और बंदूक की राजनीति के बीच अब एक नई सुबह की किरण दिखाई दे रही है। शुक्रवार को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की मौजूदगी में 210 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने का संकल्प लिया।
रियासतकाल से ही बस्तर अपने जल, जंगल और जमीन के साथ-साथ खनिज भंडार के लिए प्रसिद्ध रहा है। इस धरती पर हीरा, लोहा, टिन और सागौन जैसी ईमारती लकड़ियों का भंडार है। लेकिन इन्हीं संसाधनों को लेकर वर्षों से बस्तर ने संघर्ष देखा है।
एक समय गरीबों के अधिकार और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी आवाज धीरे-धीरे हिंसा के मार्ग पर मुड़ गई। नक्सल आंदोलन, जो कभी न्याय की बात करता था, अब निर्दोष लोगों की हत्या, सरकारी कामों में बाधा और विकास को रोकने का माध्यम बन गया।
सरकार की ‘घर वापसी’ पहल ला रही रंग
राज्य सरकार और केंद्र के संयुक्त प्रयासों से विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में चल रहे नक्सल उन्मूलन अभियान ने अब प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। सरकार द्वारा चलाई जा रही ‘घर वापसी दृ आइए’ योजना के तहत समर्पण करने वाले नक्सलियों को पुनर्वास नीति के अंतर्गत आवास, भूमि, रोजगार और जीवनयापन की सुविधा दी जा रही है।
इतिहास का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के समक्ष 17 फरवरी 2025 को जगदलपुर शहर के लालबाग में 210 नक्सलियों ने अपने हथियार, बारूद और नक्सली वर्दी सरकार को सौंप दी । सभी ने भारतीय संविधान की प्रति हाथ में लेकर संविधान की मर्यादा में जीवन यापन करने की शपथ ली । यह अब तक का देश का सबसे बड़ा नक्सली आत्मसमर्पण माना जा रहा है, जिसने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है और सरकार की नीतियों के प्रति लोगों का विश्वास और मजबूत किया है ।
बस्तर में लौट रही है शांति की बयार
इस ऐतिहासिक कदम से न केवल नक्सलियों के मनोबल में कमी आई है, बल्कि बस्तर में शांति और विकास का नया अध्याय शुरू हुआ है। स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने सरकार की इस नीति की खुले दिल से सराहना की है।
हालांकि नक्सल मुक्त बस्तर की दिशा में यह कदम ऐतिहासिक है, साथ ही असली सफलता तब मिलेगी जब भ्रष्टाचार, घूसखोरी और घटिया निर्माण कार्यों पर भी लगाम लगेगी ।
अक्सर देखा गया है कि सड़क निर्माण, पुल-पुलिया, शासकीय भवन और विकास योजनाओं में भारी अनियमितताएं और कमीशनखोरी आम बात बन गई है। ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से निर्माण कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे ग्रामीणों को वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता ।
यदि इस प्रकार की घूसखोरी और भ्रष्टाचार पर सख्त कार्यवाही की जाए, तो बस्तर न केवल नक्सल मुक्त बल्कि पूरी तरह विकासशील और आत्मनिर्भर क्षेत्र बन सकता है।हालांकि बस्तर को पूरी तरह नक्सल मुक्त करने के साथ-साथ भ्रष्टाचार और तंत्र की निष्क्रियता पर भी अंकुश लगाना आवश्यक है, ताकि क्षेत्र की विकास यात्रा लंबे समय तक स्थिर रह सके ।
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