छत्तीसगढ़

वंदे मातरम् : 150 वर्ष बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित वन्देमातरम आजादी के आंदोलन का जय घोष बना था…

जगदलपुर(प्रभात क्रांति) । वन्देमातरम केवल राष्ट्रगान नहीं वरन् भारतीय संस्कृति और परंपरा का युग गान है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति जड़ नहीं चैतन्य है , धरती भी चैतन्य है , मां की तरह पालन पोषण करती है।धरती अन्न जल , फल फूल और आश्रय प्रदान करती है।
उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार-

  •  इसे अक्टूबर 1874/ 7 नवंबर 1875 को लिखा गया था। यह संस्कृत एवं बंगाली मिश्रित भाषा में था ।
  • इसे वर्ष 1882 में आनंद मठ उपन्यास में शामिल किया गया।
  • इसकी पहली धुन गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर के संगीत शिक्षक यदुनाथ भट्टाचार्य ने तैयार किया था। उन्होंने धुन तैयार करते समय गीत में कुछ फेरबदल भी किया था।
  •  वर्ष 1883 में इसे राग तिलोक कमोद में संगीत बद्ध किया गया।फिर प्रतिभसुंदरी देवी राग देस में संगीतबद्ध किया गया।
  •  पहली बार वर्ष 1886 में हेमचंद्र बनर्जी ने कांग्रेस अधिवेशन में गाया था।
  •  वर्ष 1896 में गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर ने स्वयं सुर बद्ध कर कांग्रेस अधिवेशन में गाया था।
  • वर्ष 1901 में कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन में दक्षिणरंजन सेन ने अपने द्वारा सुर बद्ध कर गया था।इस अधिवेशन में महात्मा गांधी भी उपस्थित थे।
  • वर्ष1901 के बाद हर कांग्रेस अधिवेशन में गाया जाने लगा।
  • वर्ष 1905 के बंग भंग आंदोलन के समय यह पूरे देश में फैल गया। यह आजादी का तराना बना ।अरविंद घोष ने इसका अंग्रेजी और महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी में अनुवाद किया।
  • वर्ष 1937 में कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा गठित समिति ,जिसमें जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, आचार्य नरेंद्र देव और मौलाना आजाद थे, ने निर्णय लिया कि सार्वजनिक सभाओं में इस गान दो पद ही गाए जायेंगे ।
  • 24 जनवरी 1950 को वंदे मातरम् राष्ट्र गीत के रूप में अपनाया गया।

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