सिरहसार भवन का व्यवसायिक उपयोग बंद होना चाहिए — नरेंद्र पाणिग्राही, सिरहसार भवन में ऐतिहासिक बस्तर दशहरा एवं गोंचा महापर्व के विभिन्न अनुष्ठान संपन्न होता।


जगदलपुर(प्रभात क्रांति) । शहर के हृदय स्थल पर स्थित ऐतिहासिक सिरहसार भवन बस्तर की सांस्कृतिक, धार्मिक और परंपरागत पहचान का प्रतीक माना जाता है। यह वही भवन है जहाँ बस्तर दशहरा पर्व के दौरान मुख्य रस्म डेरी गड़ाई, जोगी बिठाई एवं बस्तर गोंचा महापर्व के अवसर पर भगवान श्री जगन्नाथ प्रभु नौ दिनों तक विराजमान रहते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि बस्तर की प्राचीन परंपराओं से भी सीधा जुड़ा हुआ है।
परंतु इन पारंपरिक आयोजनों के पश्चात टेम्पल स्टेट द्वारा सिरहसार भवन को कपड़ों की बिक्री (सेल) जैसे व्यवसायिक उपयोग हेतु दिया जाना, आम नागरिकों में गहरी नाराजगी का कारण बना हुआ है। इस व्यवसायिक गतिविधि से भवन के अंदरूनी हिस्सों में भारी नुकसान हो रहा है लाइट फिटिंग्स, दीवारों, फर्श तथा अन्य संरचनाओं को क्षति पहुंच रही है। हाल ही में कई वर्षों के बाद भवन का मेंटेनेंस एवं मरम्मत कार्य कराया गया है, ऐसे में उसका व्यवसायिक उपयोग भवन की गरिमा के साथ-साथ प्रशासन की संवेदनशीलता पर भी प्रश्न खड़ा करता है।
नरेंद्र पाणिग्राही ने कहा कि सिरहसार भवन बस्तर की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यहाँ भगवान श्री जगन्नाथ की पूजा-अर्चना एवं परंपरागत रस्में होती हैं। ऐसे पवित्र स्थल का व्यवसायिक उपयोग न केवल अनुचित है, बल्कि आमजन की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचाता है।
प्रशासन को चाहिए कि वह इस भवन का उपयोग केवल धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित रखे। आर्थिक लाभ के लिए इस ऐतिहासिक भवन का व्यावसायिक दोहन बस्तर की परंपराओं का अपमान है। यदि शीघ्र ही इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो जनप्रतिनिधियों एवं समाज के लोगों के साथ मिलकर इस विषय पर व्यापक आंदोलन किया जाएगा। सिरहसार भवन जैसे रियासत कालीन ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण प्रशासन की जिम्मेदारी है। ऐसे भवनों का उपयोग केवल संस्कृति और परंपरा से जुड़े आयोजनों के लिए होना चाहिए, न कि अस्थायी व्यावसायिक उपयोग के लिए। सिरहसार भवन का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व देखते हुए, प्रशासन से मांग की गई है कि वह तत्काल प्रभाव से भवन के व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगाए और इस ऐतिहासिक धरोहर की गरिमा को बनाए रखे।





