छत्तीसगढ़

एक माह बाद भी नहीं हुई कार्रवाई: ड्रग इंस्पेक्टर सौरभ जैन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को नजरअंदाज कर रहा है जिला प्रशासन

जगदलपुर(प्रभात क्रांति), छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में पदस्थ ड्रग इंस्पेक्टर सौरभ जैन पर पत्रकार ओमप्रकाश साहू द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार, मानसिक उत्पीड़न और कर्तव्यहीनता के गंभीर आरोपों को 40 दिन बीत जाने के बाद भी प्रशासन ने नजरअंदाज किया है। ना तो जांच शुरू हुई, ना ही कोई जवाबदेही तय की गई है।

शिकायत का पूरा घटनाक्रम:

1 अप्रैल से 10 अप्रैल तक कई बार आवेदन जमा कराने की कोशिश की गई, लेकिन ड्रग इंस्पेक्टर सौरभ जैन ने हर बार टालमटोल और अनदेखी की।
11 अप्रैल को मजबूर होकर कलेक्टर बस्तर को लिखित शिकायत सौंपी गई। इसके बाद PMO, कमिश्नर ऑफिस और अन्य उच्च अधिकारियों को भी शिकायत भेजी गई।

आज जब फिर से संपर्क किया गया, तो न फोन उठाया गया और न ही कार्यालय में उपस्थिति मिली। आवेदन की रिसीविंग तक आज तक नहीं दी गई — यह सीधा नियमों का उल्लंघन और पद का दुरुपयोग है।

भ्रष्टाचार की पुष्टि:

इसी दौरान बस्तर के लालबाग क्षेत्र के एक मेडिकल स्टोर को बिना निरीक्षण, बिना भेंट किए महज़ ₹40,000 की घूस में एक हफ्ते के अंदर ड्रग लाइसेंस जारी कर दिया गया।
यह कार्य भी सौरभ जैन द्वारा ही किया गया, जिससे भ्रष्टाचार की पुष्टि होती है। सरकारी शुल्क ₹3000 होते हुए भी घूस लेकर लाइसेंस जारी करना सीधा भ्रष्ट आचरण है।

प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत?

जब शिकायतकर्ता ओमप्रकाश साहू ने दोबारा कलेक्टर एस. हरीश से मुलाकात की, तो पता चला कि सौरभ जैन अभी भी प्रभारी हैं, लेकिन ऑफिस से गायब हैं और ‘छुट्टी पर हैं’ कहकर जवाब टाल दिया गया।

अब सवाल ये उठता है कि:
“जब अधिकारी छुट्टी पर है, तो ऑफिस का काम कौन कर रहा है?”
“किसकी जवाबदेही तय होगी?”

ADC नगवंशी की भूमिका भी संदिग्ध

शिकायतकर्ता का दावा है कि ADC नगवंशी भी फोन नहीं उठा रहे, और कई बार प्रयास के बावजूद बात नहीं हो पा रही है।
इतना ही नहीं, आरोप है कि सौरभ जैन और ADC नगवंशी मिलकर कमीशन बाँटते हैं, एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर आम लोगों को परेशान करते हैं और नियमित घूसखोरी को अंजाम देते हैं।

क्या यही है “सुशासन” का चेहरा?

जब शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती, तो यह सिर्फ प्रशासन की निष्क्रियता नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार को संरक्षण देने की मानसिकता को उजागर करता है।
साफ दिखता है कि ड्रग विभाग में लाइसेंस सिर्फ पैसे से मिलता है, नियमों से नहीं

निष्कर्ष:

यदि एक पत्रकार के साथ यह व्यवहार हो सकता है, तो साधारण नागरिक की स्थिति का अनुमान लगाना कठिन नहीं
बिना रिश्वत दिए न तो आवेदन स्वीकार हो रहा, न ही कोई कार्रवाई हो रही।
ऐसे में यह पूछना जरूरी है: क्या बस्तर का प्रशासन भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है?

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