केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने देश में विकसित जीनोम संपादित चावल की दो किस्मों का किया लोकार्पण, भारत जीनोम संपादित चावल की किस्में विकसित करने वाला दुनिया का पहला देश बना…
नई जीनोम किस्में अधिक उत्पादन, जलवायु अनुकूलता और जल संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखती हैं- शिवराज सिंह, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि – श्री शिवराज सिंह चौहान...

नई दिल्ली(प्रभात क्रांति) केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के नई दिल्ली स्थित भारत रत्न सी सुब्रह्मण्यम ऑडिटोरियम, एनएएससी कॉम्प्लेक्स में, देश में विकसित विश्व की पहली दो जीनोम संपादित चावल की किस्मों का लोकार्पण किया और वैज्ञानिक शोध की दिशा में नवाचार की शुरुआत की। बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों और किसानों ने कार्यक्रम में शिरकत की।
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने दोनों किस्मों के अनुसंधान में योगदान करने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया। डीआरआर धान 100 (कमला) के अनुसंधान में योगदान के लिए डॉ. सत्येंद्र कुमार मंग्राउथिया, डॉ. आर.एम सुंदरम, डॉ. आर. अब्दुल फियाज, डॉ. सी. एन. नीरजा और डॉ. एस. वी. साई प्रसाद तथा पूसा डीएसटी राइस के लिए डॉ. विश्वनाथन सी, डॉ. गोपाल कृष्णनन एस, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. शिवानी नागर, डॉ. अर्चना वत्स, डॉ. रोहम रे, डॉ. अशोक कुमार सिंह, डॉ. प्रांजल यादव व अन्य संयोजकों जिसमें श्री राकेश सेठ, श्री ज्ञानेंन्द्र सिंह और श्री सत्येंद्र मंग्राउथिया को सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री जी का विकसित भारत का संकल्प पूरा हो रहा है और किसान समृद्धि की ओर बढ़ रहे है। आज का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। आजादी के अमृत महोत्सव में प्रधानमंत्री जी ने कृषि की चुनौतियों से निपटने के लिए किसानों से आधुनिक तकनीक अपनाने का आह्वान किया था, उन्हीं के शब्दों को प्रेरणा का रूप देते हुए आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने नई किस्सों का इजाद कर कृषि क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि अर्जित की है।
उन्होंने कहा कि इन नई फसलों के विकसित होने से उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, साथ ही पर्यावरण के संदर्भ में भी सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। इससे ना केवल सिंचाई जल में बचत होगी, बल्कि ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन से पर्यावरण पर पड़ने वाले दबाव में भी कमी आएगी। यानि आम के आम और गुठलियों के दाम के समान लाभ पहुंचेगा।
श्री चौहान ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा था जय जवान, जय किसान, उसमें आगे अटल जी ने जोड़ा जय विज्ञान और हमारे प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने जोड़ा जय अनुसंधान।
श्री चौहान ने कहा कि आने वाले समय में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, पोषणयुक्त उत्पादन बढ़ाने और देश के साथ-साथ दुनिया के लिए खाद्यान्न की व्यवस्था करते हुए भारत को फूड बासकेट बनाने के ध्येय से काम करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें गर्व हैं कि हम बेहतरीन काम कर रहे हैं, वैज्ञानिक बधाई के पात्र भी है, उन्नत प्रयासों का ही परिणाम है कि आज हम 48 हजार करोड़ का बासमती चावल बाहर निर्यात कर रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि सोयाबीन, अरहर, तूअर, मसूर, उड़द, ऑयल सीड की किस्मों सहित दलहन और तिलहन के उत्पादन की दिशा में वृद्धि के लिए हमें और आगे कदम बढ़ाना होगा।
श्री चौहान ने यह भी कहा कि हमें माइनस 5 और प्लस 10 के फॉर्मूले को अपनाते हुए काम करना होगा। इस फॉर्मूले का मतलब है 5 मिलियन (50 लाख) हेक्टेयर चावल का एरिया कम करना है और 10 मिलियन (एक करोड़) टन चावल का उत्पादन उतने एरिया में ही बढ़ाना है। इस उद्देश्य से काम करने से जो क्षेत्रफल बचेगा, उसमें दलहन और तिलहन की खेती पर जोर दिया जाएगा।
श्री चौहान ने कहा कि किसान भाई-बहनों विशेषकर युवा किसान से आह्वान करता हूं कि उन्नत खेती के लिए सामने आए। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कृषि अनुसंधान को किसानों तक ले जाना होना। कृषि वैज्ञानिक और किसान एक हो जाएंगे तो चमत्कार हो जाएगा।
इस कार्यक्रम में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री भागीरथ चौधरी ने वर्चुअल जुड़कर विचार व्यक्त करते हुए वैज्ञानिकों को बधाई दी। कार्यक्रम में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव श्री देवेश चतुर्वेदी, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. मांगी लाल जाट, आईसीएआर के उप महानिदेशक डॉ. देवेन्द्र कुमार यादव, भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम, आईसीएआर के पूर्व निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह, आईसीएआर के निदेशक डॉ. सीएच. श्रीनिवास राव, उप निदेशक डॉ विश्वनाथन भी शामिल रहें।
पृष्ठभूमि:
आईसीएआर ने भारत की पहली जीनोम-संपादित चावल की किस्में – डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1 विकसित की हैं। ये किस्में अधिक उत्पादन, जलवायु अनुकूलता और जल संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखती हैं।
इन नई किस्मों को जीनोम संपादन तकनीक (सीआरआईएसपीआर-कैस) आधारित जीनोम एडिटिंग तकनीक से विकसित किया गया है, जिससे जीवों के मूल जीन में सूक्ष्म बदलाव किए जाते हैं, और कोई विदेशी डीएनए नहीं जोड़ा जाता। एसडीएन 1 और एसडीएन 2 प्रकार के जीनोम एडिटिंग को सामान्य फसलों के अंतर्गत भारत सरकार के जैव सुरक्षा नियमों के तहत मंजूरी प्राप्त हो चुकी है।
आईसीएआर ने 2018 में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान निधि के अंतर्गत दो प्रमुख धान की किस्मों – सांबा महसूरी और एमटीयू 1010 – को बेहतर बनाने हेतु जीनोम एडिटिंग अनुसंधान आरंभ किया था। इसका परिणाम हैं दो उन्नत किस्में, जो निम्नलिखित लाभ प्रदान करती हैं:
• उपज में 19% तक वृद्धि
• ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20% तक की कमी
• सिंचाई जल की 7,500 मिलियन घन मीटर की बचत
• सूखा, लवणता व जलवायु दबाव के प्रति बेहतर सहनशीलता
डीआरआर धान 100 (कमला) की किस्म को आईसीएआर-आईआईआरआर, हैदराबाद द्वारा विकसित गया है। सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) के जरिए यह किस्म विकसित की गई है। जिसका उद्देश्य प्रति बाली अनाज की की संख्या बढ़ाना है। इसकी फसल 20 दिन पहले पकती है (~130 दिन) और अनुकूल परिस्थितियों में 9 टन/हेक्टेयर तक उपज की क्षमता रखती है। कम अवधि होने के कारण इस किस्म की खेती में पानी एवं उर्वरकों की बचत करने और मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगी। इसका तना मजबूत है तथा गिरती नहीं । यह किस्म में चावल की गुणवत्ता में मूल किस्म यानी सांबा महसूरी जैसी हैं।
दूसरी किस्म, पूसा डीएसटी राइस 1 को आईसीएआर, आईएआरआई, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह एमटीयू 1010 किस्म पर आधारित है। यह किस्म खारे व क्षारीय मिट्टी में 9.66% से 30.4% तक उपज में वृद्धि देने में सक्षम है। 20% तक उत्पादन बढ़ने की क्षमता।
यह किस्में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल (जोन VII), छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश (जोन V), ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल (जोन III) राज्यों के लिए विकसित की गई है।
इन किस्मों का विकास विकसित भारत के लक्ष्य एवं सतत कृषि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत सरकार ने बजट 2023-24 में कृषि फसलों के लिए 500 करोड़ रुपये जीनोम एडिटिंग हेतु आवंटित किए हैं। आईसीएआर द्वारा तिलहन व दलहनों सहित कई फसलों में जीनोम एडिटिंग अनुसंधान आरंभ किए जा चुके हैं।