प्रकाश विद्यालय किरंदुल में अभिभावकों पर आर्थिक बोझ: किताबों, यूनिफॉर्म और स्टेशनरी की खुली लूट, जिला शिक्षा अधिकारी की कार्रवाई का इंतजार…

दंतेवाड़ा (प्रभात क्रांति), छत्तीसगढ़ के किरंदुल और बचेली में स्थित प्रकाश विद्यालय में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ ही अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। स्कूल प्रबंधन द्वारा किताबों, यूनिफॉर्म, मोजा, बेल्ट, टी-शर्ट और डायरी जैसी सामग्रियों की बिक्री में मनमानी और खुली लूट की शिकायतें सामने आ रही हैं। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल न केवल महंगी किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए बाध्य करता है, बल्कि इन सामग्रियों को विशेष रूप से स्कूल परिसर में ही बेचकर बाहर की दुकानों में उपलब्धता को रोकता है।
इस मामले को सीजी संविधान न्यूज़ द्वारा लगातार उजागर किए जाने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने संज्ञान लिया है और जांच के लिए एक टीम गठित की गई है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जांच अभिभावकों को राहत दिला पाएगी, या यह केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित रहेगी?किताबों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि, पुरानी किताबें बेकारप्रकाश विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि स्कूल में हर साल प्रत्येक कक्षा की एक या दो विषयों की किताबें बदल दी जाती हैं। इस बदलाव का नतीजा यह है कि बड़ी कक्षा में पढ़ने वाले भाई-बहन की किताबें छोटे भाई-बहन के लिए बेकार हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, अगर बड़ा भाई कक्षा 6 में है और छोटा कक्षा 5 में, तो बड़े की किताबें छोटे के लिए केवल रद्दी कागज बनकर रह जाती हैं। अभिभावकों का कहना है कि इस नीति के कारण उन्हें हर साल नई किताबें खरीदने के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है।स्थानीय अभिभावक रमेश साहू ने गुस्से में कहा, “हर साल किताबें बदलने की क्या जरूरत है? अगर पाठ्यक्रम में कोई बदलाव नहीं है, तो पुरानी किताबें क्यों नहीं चल सकतीं? स्कूल और प्रकाशकों की मिलीभगत से हमारी जेब काटी जा रही है।”यही नहीं, किताबों की कीमतें भी आसमान छू रही हैं। अभिभावकों के मुताबिक, कक्षा 6 की किताबों का सेट 6,000 रुपये से अधिक और कक्षा 9 की किताबें 8,000 रुपये से ज्यादा कीमत पर बेची जा रही हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये किताबें न तो बाहर की दुकानों में उपलब्ध हैं और न ही अभिभावकों को कहीं और से खरीदने की अनुमति दी जाती है। स्कूल परिसर में ही एक विशेष दुकान से किताबें खरीदना अनिवार्य है, जिससे अभिभावकों को मनमानी कीमतें चुकानी पड़ रही हैं।यूनिफॉर्म और स्टेशनरी में भी मनमानीकिताबों के बाद अब यूनिफॉर्म और स्टेशनरी की बारी है। प्रकाश विद्यालय ने प्रत्येक कक्षा को चार समूहों में बांटा है, और प्रत्येक समूह को अलग-अलग रंगों की टी-शर्ट पहनने का नियम बनाया गया है—हरा, लाल, पीला और नीला। लेकिन हर साल स्कूल बच्चों के समूह बदल देता है, जिसके कारण अभिभावकों को नई टी-शर्ट खरीदनी पड़ती है। यह टी-शर्ट, मोजा, बेल्ट और डायरी भी केवल स्कूल परिसर में ही उपलब्ध हैं और बाहर की दुकानों में नहीं मिलतीं।अभिभावक शांति देवी ने बताया, “पिछले साल मेरे बेटे को पीली टी-शर्ट दी गई थी, लेकिन इस साल उसका समूह बदलकर नीला कर दिया गया। अब मुझे फिर से नई टी-शर्ट, मोजा और बेल्ट खरीदना पड़ रहा है। ये सब स्कूल में ही बिकता है, और कीमतें इतनी ज्यादा हैं कि मध्यमवर्गीय परिवार के लिए यह बोझ बन गया है।”जिला शिक्षा अधिकारी की कार्रवाई: उम्मीद की किरण या खानापूर्ति?सीजी संविधान न्यूज़ द्वारा इस मामले को प्रमुखता से उठाए जाने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने संज्ञान लिया और स्कूल की मनमानी पर कार्रवाई की बात कही। अधिकारी ने स्पष्ट किया कि स्कूल परिसर में किताबें, यूनिफॉर्म, मोजा, टी-शर्ट या अन्य सामग्री बेचना गैरकानूनी है। इसके बजाय, स्कूल को किसी बाहरी दुकान को अधिकृत करना होगा ताकि अभिभावकों को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर सामग्री मिल सके।जिला शिक्षा अधिकारी ने जांच के लिए एक विशेष टीम गठित की है, जो किरंदुल और बचेली के प्रकाश विद्यालय में जाकर इस मामले की तहकीकात करेगी।
अधिकारी ने आश्वासन दिया कि दोषी पाए जाने पर स्कूल प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, अभिभावकों का कहना है कि ऐसी जांच अक्सर कागजी होती हैं, और स्कूल प्रबंधन अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर कार्रवाई से बच जाता है।अभिभावकों की मांग: पारदर्शिता और राहत अभिभावकों ने मांग की है कि स्कूल को किताबों और यूनिफॉर्म की बिक्री के लिए पारदर्शी नीति अपनानी चाहिए। उनकी प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं:किताबों का पुन: उपयोग: अगर पाठ्यक्रम में बदलाव नहीं है, तो पुरानी किताबों को अगली कक्षा के लिए मान्य किया जाए।बाहरी दुकानों में उपलब्धता: किताबें, यूनिफॉर्म और स्टेशनरी बाहरी दुकानों में उपलब्ध कराई जाएं ताकि अभिभावक सस्ते विकल्प चुन सकें।यूनिफॉर्म नीति में बदलाव: हर साल समूह बदलने की प्रथा बंद की जाए, ताकि अभिभावकों को बार-बार नए कपड़े न खरीदने पड़ें।कीमतों पर नियंत्रण: किताबों और यूनिफॉर्म की कीमतों पर सरकारी नियंत्रण हो, ताकि मनमानी रोकी जा सके।छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों की मनमानी का पुराना इतिहासयह पहली बार नहीं है जब छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों की मनमानी की शिकायतें सामने आई हैं।
हाल ही में बिलासपुर में भी निजी स्कूलों द्वारा किताबों और यूनिफॉर्म की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि की खबरें सामने आई थीं। राज्य के कई हिस्सों में अभिभावकों ने स्कूलों और प्रकाशकों की साठगांठ की शिकायत की है, जिसके कारण किताबों की कीमतें हर साल बढ़ रही हैं। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ में पुस्तक घोटाले का मामला भी सुर्खियों में रहा, जिसमें राजनांदगांव, सूरजपुर, धमतरी और जशपुर के जिला शिक्षा अधिकारियों और कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। इन घटनाओं से साफ है कि शिक्षा के नाम पर व्यावसायीकरण बढ़ता जा रहा है, और मध्यमवर्गीय परिवारों पर इसका सबसे ज्यादा बोझ पड़ रहा है।क्या है आगे की राह?प्रकाश विद्यालय किरंदुल और बचेली में चल रही इस खुली लूट ने अभिभावकों के सब्र का बांध तोड़ दिया है।
जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा गठित जांच टीम से उन्हें राहत की उम्मीद है, लेकिन यह उम्मीद तभी पूरी होगी जब जांच निष्पक्ष और पारदर्शी होगी। अभिभावकों का कहना है कि अगर सरकार और प्रशासन इस मामले में सख्ती नहीं दिखाएंगे, तो निजी स्कूलों की मनमानी और बढ़ेगी।स्थानीय निवासी और अभिभावक संजय ठाकुर ने कहा, “शिक्षा एक अधिकार है, व्यापार नहीं। हम चाहते हैं कि सरकार स्कूलों पर नकेल कसे और हमारी मेहनत की कमाई को इस तरह लूटने से बचाए।”अब गेंद जिला शिक्षा अधिकारी और जांच टीम के पाले में है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रकाश विद्यालय के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होती है, या यह मामला भी अन्य शिकायतों की तरह दब जाएगा। फिलहाल, किरंदुल और बचेली के अभिभावक राहत की आस में हैं, और उनकी निगाहें प्रशासन के अगले कदम पर टिकी