छत्तीसगढ़

किरंदुल-जगदलपुर मार्ग पर यात्री बसों की मनमानी: लूट, बदहाल बसें और अवैध लगेज ढुलाई…

दंतेवाड़ा(प्रभात क्रांति), किरंदुल से जगदलपुर के बीच चलने वाली यात्री बसें यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बन चुकी हैं। मनमाना किराया, खस्ताहाल बसें, अनियमित स्टॉपेज, और अवैध लगेज ढुलाई जैसे मुद्दों ने यात्रियों का जीना मुहाल कर दिया है। जिला परिवहन विभाग और स्थानीय प्रशासन की उदासीनता ने बस मालिकों और चालकों के हौसले बुलंद कर दिए हैं, जो बिना किसी जवाबदेही के यात्रियों को लूट रहे हैं। इस स्थिति ने न केवल यात्रियों की जेब पर डाला है, बल्कि सड़क सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए हैं।

 

मनमाना किराया: 170 से 220 रुपये तक की लूट

 

किरंदुल-जगदलपुर मार्ग पर बसों का किराया एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। यात्री शिकायत करते हैं कि एक ही रूट के लिए कोई बस 170 रुपये लेती है, तो कोई 220 रुपये। किराए की कोई तय सूची बसों में प्रदर्शित नहीं की जाती, जिसका फायदा चालक और कंडक्टर उठाते हैं। एक यात्री, रमेश साहू, ने बताया, “हर बार अलग-अलग किराया लिया जाता है। पूछो तो कहते हैं, ‘इतना ही है।’ परिवहन विभाग को शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं होती।”

 

छत्तीसगढ़ परिवहन विभाग ने हाल ही में सभी बसों के लिए किराया निर्धारित करने का दावा किया था, साथ ही किराया सूची बसों में चस्पा करने का आदेश भी जारी किया था। लेकिन किरंदुल-जगदलपुर मार्ग पर इस नियम का पालन होता नहीं दिखता। यात्रियों का कहना है कि बस मालिक और चालक मनमाने तरीके से किराया वसूलते हैं, और परिवहन विभाग की निष्क्रियता इस लूट को बढ़ावा दे रही है।

 

खस्ताहाल बसें: यात्रियों की मजबूरी का फायदा

 

यात्री बसों की स्थिति इतनी जर्जर है कि लोग बैठने से पहले दो बार सोचते हैं। टूटी-फूटी सीटें, गंदगी, और खराब इंजन वाली बसें आम बात हैं। एक महिला यात्री, लक्ष्मी बाई, ने शिकायत की, “बसों की हालत इतनी खराब है कि लंबी यात्रा में कमर दर्द होने लगता है। लेकिन मजबूरी है, क्योंकि दूसरा कोई साधन नहीं है।”

 

परिवहन विभाग के नियमों के अनुसार, बसों को नियमित मेंटेनेंस और फिटनेस सर्टिफिकेट की जरूरत होती है। लेकिन स्थानीय यात्रियों का आरोप है कि जिला परिवहन अधिकारी (RTO) इसकी जांच करने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं। कई बसें ऐसी हैं, जो सड़क पर चलने लायक नहीं हैं, फिर भी बिना किसी रोक-टोक के सवारियां ढो रही हैं।

 

अनियमित स्टॉपेज: सवारी उठाने-उतारने में मनमानी

 

बस चालकों की मनमानी का एक और पहलू है सवारियों को उठाने और उतारने में उनकी लापरवाही। यात्रियों का कहना है कि चालक जहां चाहें, वहां बस रोककर सवारी बिठा लेते हैं, लेकिन जब उतारने की बारी आती है, तो यात्री के अनुरोध के बावजूद 50 से 100 मीटर आगे या पीछे उतारते हैं। यह खासकर बुजुर्गों और महिलाओं के लिए बड़ी समस्या है।

 

एक स्थानीय निवासी, सुरेश कुमार, ने बताया, “मैंने कई बार चालक से कहा कि मुझे ठीक जगह उतार दे, लेकिन वे ध्यान नहीं देते। सवारी बिठाने के लिए तो कहीं भी रुक जाते हैं, लेकिन उतारने में इतनी लापरवाही क्यों?” यह अनियमितता न केवल यात्रियों को असुविधा पहुंचाती है, बल्कि सड़क सुरक्षा के लिए भी खतरा है।

 

अवैध लगेज ढुलाई: यात्री बसें बन गईं मालवाहक

 

सबसे गंभीर मुद्दा है यात्री बसों का मालवाहक वाहनों की तरह इस्तेमाल। किरंदुल, जगदलपुर, और रायपुर-बैलाडीला मार्ग पर कई बसें अब सिर्फ लगेज ढोने के लिए चल रही हैं। कुछ बसें तो पूरी तरह लगेज के लिए निर्धारित हैं, जिनमें सवारियों के लिए जगह ही नहीं बचती। यात्रियों का आरोप है कि ये बसें सामान ढोने के लिए इस्तेमाल हो रही हैं, जिसके लिए उनके पास कोई परमिट नहीं है।

 

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 79 के तहत मालवाहक वाहनों के लिए अलग परमिट की जरूरत होती है। लेकिन यात्री बसों में बिना परमिट के सामान ढोया जा रहा है, और परिवहन विभाग इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा। एक यात्री, मोहन लाल, ने कहा, “बस में सामान इतना भरा होता है कि बैठने की जगह नहीं मिलती। ये बसें मालवाहक गाड़ियों की तरह काम कर रही हैं, लेकिन कोई रोक-टोक नहीं है।”

 

नगरपालिका से टकराव: अस्थाई दखल शुल्क पर विवाद

 

यात्री बसों द्वारा नगर के चौक-चौराहों पर सामान उतारने की प्रक्रिया भी विवाद का कारण बनी हुई है। स्थानीय नगरपालिका और नगर निगम इन बसों से अस्थाई दखल शुल्क वसूलना चाहते हैं, क्योंकि ये बसें सार्वजनिक स्थानों पर सामान उतारकर यातायात और व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। लेकिन बस मालिक इस शुल्क का भुगतान करने से इनकार करते हैं और कानूनी रास्ता अपनाने की धमकी देते हैं।

 

सवाल उठता है कि अगर ये बसें मालवाहक वाहनों का काम कर रही हैं, तो क्या उनके पास इसके लिए वैध परमिट है? यदि नहीं, तो नगरपालिका को इनसे अस्थाई दखल शुल्क वसूलने का पूरा अधिकार है। फिर भी, प्रशासनिक लापरवाही के चलते बस मालिकों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही।

 

परिवहन विभाग की निष्क्रियता: कुंभकरण की नींद

जिला परिवहन विभाग की निष्क्रियता इस पूरे मामले की जड़ है। यात्रियों का कहना है कि परिवहन अधिकारी “कुंभकरण की नींद” सो रहे हैं, और बस मालिकों की मनमानी पर कोई अंकुश नहीं लगा रहे। छत्तीसगढ़ में परिवहन विभाग ने हाल ही में मनमाना किराया वसूलने वालों के खिलाफ कार्रवाई का दावा किया था, जिसमें बसों पर किराया सूची चस्पा न करने पर 349 बसों पर कार्रवाई की गई। लेकिन किरंदुल-जगदलपुर मार्ग पर ऐसी कोई कार्रवाई नजर नहीं आती।

यात्रियों ने मांग की है कि परिवहन विभाग नियमित जांच अभियान चलाए, बसों की फिटनेस और परमिट की जांच करे, और अवैध लगेज ढुलाई पर रोक लगाए। साथ ही, किराए की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए हर बस में किराया सूची अनिवार्य रूप से चस्पा की जाए।

यात्रियों की मांग: सख्त कार्रवाई और सुधार

यात्री इस मनमानी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनकी मांगें हैं:

1 निश्चित किराया:* किरंदुल-जगदलपुर मार्ग पर एक समान किराया निर्धारित हो, और इसे हर बस में प्रदर्शित किया जाए।

2-बसों की मरम्मत:* खस्ताहाल बसों की मरम्मत और नियमित फिटनेस जांच हो।

3-नियमित स्टॉपेज:* सवारी उठाने और उतारने के लिए निर्धारित स्टॉप बनाए जाएं।

4–अवैध लगेज ढुलाई पर रोक:* मालवाहक परमिट के बिना सामान ढोने वाली बसों पर कार्रवाई हो।

5–अस्थाई दखल शुल्क:* नगरपालिका को सामान उतारने वाली बसों से शुल्क वसूलने का अधिकार मिले।

निष्कर्ष: प्रशासन जागे, यात्रियों को राहत दे

किरंदुल-जगदलपुर मार्ग पर यात्री बसों की मनमानी और अवैध गतिविधियां न केवल यात्रियों के लिए परेशानी का कारण हैं, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की नाकामी को भी उजागर करती हैं। परिवहन विभाग और स्थानीय प्रशासन को तत्काल जागना होगा और यात्रियों की शिकायतों का समाधान करना होगा। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो यह लूट और अव्यवस्था और बढ़ेगी, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा।

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