छत्तीसगढ़

कांकेर के आमाबेड़ा में जनजातीय आस्था पर संकट, शव दफन विवाद ने लिया हिंसक रूप, सर्वसमाज ने प्रशासन पर पक्षपात और संवैधानिक लापरवाही के लगाए गंभीर आरोप…

जगदलपुर (प्रभात क्रांति) | छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के आमाबेड़ा क्षेत्र में 15 से 18 दिसंबर के बीच घटित घटनाक्रम ने पूरे बस्तर संभाग में तनाव की स्थिति पैदा कर दी है। सर्वसमाज एवं जनजाति सुरक्षा मंच ने आरोप लगाया है कि पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाले इस जनजातीय क्षेत्र में संविधान, परंपरा और कानून-व्यवस्था की खुलेआम अनदेखी की गई।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, 15 दिसंबर को कांकेर जिला अस्पताल में बड़े तेवड़ा निवासी चमरा राम सलाम की मृत्यु के बाद उनके पुत्र द्वारा गांव में पारंपरिक श्मशान के बजाय निजी भूमि पर ईसाई रीति से शव दफन करने की कोशिश की गई। ग्रामीणों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि जनजातीय क्षेत्र में अंतिम संस्कार केवल परंपरागत और स्वीकृत स्थलों पर ही किया जा सकता है।

विरोध के बावजूद दफन, बढ़ा तनाव

ग्रामीणों का आरोप है कि विरोध के दौरान बाहरी तत्वों और कुछ संगठनों से जुड़े लोगों की मौजूदगी से माहौल और अधिक संवेदनशील हो गया। पुलिस की उपस्थिति के बावजूद शव को निजी भूमि पर दफन कर दिया गया, जिससे गांव में भय और आक्रोश फैल गया।

इसके बाद सर्वसमाज ने तहसीलदार और प्रशासन को आवेदन देकर शव को विधिवत पंजीकृत कब्रिस्तान में स्थानांतरित करने की मांग की, लेकिन प्रशासन द्वारा तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की गई। प्रशासनिक उदासीनता के विरोध में 16 दिसंबर को शांतिपूर्ण धरना शुरू हुआ, जो बाद में बड़े आंदोलन में बदल गया।

17 दिसंबर को हिंसा, 25 से अधिक घायल

17 दिसंबर की सुबह जब ग्रामीण प्रशासनिक आश्वासन के बाद मौके पर पहुंचे, तो वहां रातों-रात पक्का चबूतरा बनाए जाने की बात सामने आई। आरोप है कि इसी दौरान सैकड़ों लोगों की भीड़ ने ग्रामीणों पर हमला कर दिया। इस हिंसा में 25 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें कई की हालत गंभीर बताई जा रही है।

ग्रामीणों का कहना है कि हमले के बावजूद पुलिस द्वारा तत्काल और निष्पक्ष कार्रवाई नहीं की गई। उलटे, 18 दिसंबर को शव हटाने की प्रक्रिया के दौरान लाठीचार्ज किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासी ग्रामीण घायल हुए।

प्रशासन और पुलिस पर गंभीर सवाल

सर्वसमाज एवं जनजाति सुरक्षा मंच ने आरोप लगाया है कि

पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में ग्रामसभा की सर्वोच्चता की अनदेखी की गई

अवैध रूप से धार्मिक गतिविधियों को संरक्षण मिला

हिंसा के मामलों में एकतरफा एफआईआर दर्ज की गई

गंभीर रूप से घायलों की मेडिकल रिपोर्ट को हल्का दिखाने का प्रयास हुआ

संगठन ने इस पूरे घटनाक्रम की उच्च स्तरीय, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की है। साथ ही दोषी अधिकारियों और हमलावरों पर कठोर कार्रवाई की अपील की गई है।

न्याय नहीं मिला तो आंदोलन की चेतावनी

प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट किया गया है कि यदि शासन-प्रशासन जनजातीय समाज के संवैधानिक अधिकारों, आस्था और सुरक्षा की रक्षा करने में विफल रहता है, तो सर्वसमाज सड़क से लेकर न्यायालय तक संघर्ष करने को बाध्य होगा।

यह मामला न केवल स्थानीय विवाद का है, बल्कि जनजातीय अधिकारों, संविधान की पाँचवीं अनुसूची और प्रशासनिक निष्पक्षता की गंभीर परीक्षा बन चुका है।

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