गोदावरी माइंस विस्तार का जोरदार विरोध – उमाशंकर शुक्ला और सतीश तिवारी ने की प्रेस वार्ता


जगदलपुर(प्रभात क्रांति)। बस्तर जिला पत्रकार भवन में आज पं. उमाशंकर शुक्ला, संयुक्त सचिव—छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी, और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सतीश तिवारी ने संयुक्त रूप से प्रेस वार्ता आयोजित कर मेसर्स गोदावरी पावर एंड इस्पात लिमिटेड, रायपुर की आरीडोंगरी माइंस विस्तार परियोजना का कड़ा विरोध दर्ज कराया।
उन्होंने बताया कि कंपनी द्वारा ग्राम कच्छी, तहसील भानुप्रतापपुर, जिला उत्तर बस्तर कांकेर के टोपोशीट क्रमांक 64 H/2, 64 H/3 और 64 D/15 के कुल 32.36 हेक्टेयर क्षेत्र में पर्यावरण स्वीकृति हेतु जनसुनवाई दिनांक 13 नवंबर 2025 को रखी गई है, जिसके लिए क्षेत्र के लोग गंभीर आपत्ति दर्ज कर रहे हैं। शुक्ला ने कहा कि यह पूरा क्षेत्र आरक्षित वन के मध्य स्थित है और पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है, जहाँ किसी भी निजी कंपनी को खनन या औद्योगिक परियोजना देने से पहले वहां के मूल निवासियों की सहमति अनिवार्य है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्व में किसी ग्राम संस्था से गुपचुप तरीके से अनापत्ति प्रमाणपत्र लिया गया था, जो वर्तमान परिस्थितियों में अमान्य माना जाना चाहिए।
प्रेस वार्ता में बताया गया कि कंपनी को पूर्व में आरीडोंगरी क्षेत्र में 106.60 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि पर लौह अयस्क खनन की मंजूरी दी गई थी, लेकिन कंपनी ने अपने पर्यावरण प्रस्ताव में दिए गए किसी भी आश्वासन का पालन नहीं किया। शुक्ला और तिवारी ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि कंपनी ने हजारों की संख्या में इमारती, फलदार और उपयोगी वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की है, जबकि विकल्प के रूप में एक भी पेड़ का वृक्षारोपण नहीं किया। ग्रीन कॉरिडोर निर्माण, धूल नियंत्रण, सड़क पर पानी का छिड़काव, और आसपास के गांवों में सामुदायिक विकास—इन सभी वादों को कंपनी ने पूरी तरह से नजरअंदाज किया है।
उन्होंने यह भी कहा कि मशीनों से निरंतर ड्रिलिंग और हैवी ब्लास्टिंग के कारण पूरे क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण बढ़ गया है, जिससे वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास छोड़कर दूर क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं। आरक्षित वन के पेड़ों और पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान पहुँच रहा है। इसके अलावा, खदान की खुदाई से भू-जल स्तर प्रभावित होगा, दूषित पानी की निकासी आसपास की जमीन और नदी-नालों को प्रदूषित करेगी और भविष्य के लिए गंभीर पर्यावरणीय संकट उत्पन्न होगा।
प्रेस वार्ता में यह भी बताया गया कि प्रस्तावित क्षेत्र चारों ओर से राजोबिदिह, खाण्डे, नधु, पिचेकट्टा, मारडेल, रनवाही, उनोचपनी, मगरधा और लिमोडीह जैसे आरक्षित वनों से घिरा हुआ है, और कंपनी द्वारा पर्यावरण प्रस्ताव में दिखाए गए मानचित्र एवं दूरी पूर्णतः भ्रामक हैं। वास्तविकता में ये वनसीमा क्षेत्र प्रस्तावित खनन क्षेत्र के अत्यंत निकट हैं, जिससे बड़े पैमाने पर जैव विविधता को नुकसान पहुँचने की आशंका है।
शुक्ला और तिवारी ने कहा कि कंपनी की परियोजना लागत मात्र 8.76 करोड़ रुपये बताई गई है, जबकि पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई संभव ही नहीं है। उपलब्ध खनिज भंडार भी सीमित है, जो केवल 8 वर्ष के लिए पर्याप्त बताया गया है। इतनी सीमित खनन अवधि के लिए विशाल आरक्षित वन क्षेत्र को नष्ट करना किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं है।
उन्होंने कहा कि परियोजना से स्थानीय लोगों को न रोजगार मिला है, न बुनियादी सुविधाएँ। आरीडोंगरी में पहले से संचालित खदान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जहाँ कंपनी ने एक भी सामुदायिक विकास कार्य नहीं किया।
अंत में, पं. उमाशंकर शुक्ला और सतीश तिवारी ने स्पष्ट रूप से मांग की कि प्रस्तावित जनसुनवाई में क्षेत्रवासियों, पंचायत प्रतिनिधियों और जनप्रतिनिधियों द्वारा प्रस्तुत आपत्ति को ही वैधानिक अभिमत माना जाए और ग्राम कच्छी के आरक्षित वन क्षेत्र में प्रस्तावित आरीडोंगरी माइंस विस्तार परियोजना की पर्यावरण स्वीकृति को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए।




