बस्तर में आदिवासी समाज का आक्रोश: ‘दबाने का हो रहा प्रयास, ज्वलंत मुद्दों पर चुप्पी खतरनाक’, प्रेसवार्ता कर सर्व आदिवासी समाज ने जताई चिंता

बीजापुर(प्रभात क्रांति)। बस्तर संभाग के सभी सात जिलों में एक साथ आयोजित महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस में सर्व आदिवासी समाज ने बस्तर में बिगड़ती परिस्थितियों पर गहरी चिंता व्यक्त की।
गोंडवाना भवन बीजापुर में आयोजित प्रेस वार्ता में समाज के प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि आदिवासी आवाजों को दबाने का व्यवस्थित प्रयास किया जा रहा है और कई ज्वलंत मुद्दों पर सरकार और प्रशासन की चुप्पी बनी हुई है।
आवाजों को कुचलने का आरोप
समाज ने स्पष्ट किया कि बस्तर अंचल में विभिन्न मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाले संगठनों और व्यक्तियों को निशाना बनाया जा रहा है। हाल ही में तेंदूपत्ता बोनस घोटाले को उजागर करने वाले पूर्व विधायक मनीष कुंजाम के घर पर छापे को इसी कड़ी में देखा जा रहा है। समाज का कहना है कि शिकायतकर्ता पर ही कार्रवाई करना यह दर्शाता है कि यह आवाज़ों को दबाने की कोशिश है।
शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल
प्रेस कॉन्फ्रेंस में शिक्षा के गिरते स्तर पर भी चिंता व्यक्त की गई। प्रतिनिधियों ने कहा कि युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया के कारण स्कूलों में विषयवार शिक्षकों की पदस्थापना नहीं हो पा रही है। इससे आदिवासी अंचल में शिक्षा की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ रहा है। समाज ने मांग की कि बच्चों की संख्या के बजाय कक्षा और विषयवार शिक्षकों की नियुक्ति की जाए, विशेषकर बस्तर जैसे शिक्षा में पिछड़े क्षेत्र में।
कवासी लखमा की गिरफ्तारी पर उठे सवाल
पूर्व मंत्री और वरिष्ठ आदिवासी नेता कवासी लखमा की गिरफ्तारी को भी समाज ने आदिवासी आवाज़ को दबाने का प्रयास बताया। समाज ने याद दिलाया कि लखमा ने अपने मंत्रित्वकाल में क्षेत्र के विकास, कैदियों की रिहाई, बंद पड़े स्कूलों को फिर से शुरू करने और विशेष पिछड़ी जनजाति के बच्चों को एमबीबीएस में प्रवेश दिलाने जैसे महत्वपूर्ण काम किए थे। उन्होंने स्थानीय भर्ती और जल, जंगल, जमीन के मुद्दों पर मुखरता से अपनी बात रखी थी। ऐसे जनप्रतिनिधि को जेल में बंद करना समाज के लिए चिंता का विषय है।
समाज ने जताई चिंता :
• पेसा और वन अधिकार कानून का उल्लंघन: समाज ने आरोप लगाया कि पेसा और वन अधिकार कानून के प्रावधानों का बस्तर में सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है।
• संसाधनों का निजीकरण और अवैध दोहन: नगरनार के निजीकरण और बैलाडीला सहित अन्य खदानों को निजी हाथों में सौंपने पर कड़ी आपत्ति जताई गई। समाज का कहना है कि इससे 70 साल में निकाला जाने वाला लोहा 10 साल में ही निकाला जा रहा है।
• आश्रम शालाओं में असुरक्षा: आश्रम शालाओं और छात्रावासों में लगातार आदिवासी लड़कियों के साथ बलात्कार और लैंगिक उत्पीड़न की घटनाओं पर समाज ने गहरी चिंता व्यक्त की।
• जंगल और जमीन का अवैध अधिग्रहण: बस्तर की जंगल और जमीन को बिना विधिवत अधिग्रहण के विकास परियोजनाओं के लिए लेने से जंगल में तेजी से कमी आई है, जिस पर तुरंत रोक लगाने की मांग की गई।
• भूमाफियाओं का बढ़ता आतंक: राजस्व विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से आदिवासियों और गैर-आदिवासियों की जमीनों पर भूमाफियाओं के अवैध कब्ज़े को उजागर किया गया। समाज ने इस पर अंकुश लगाने के लिए भूमाफी नियंत्रण अधिनियम पारित करने की मांग की।
• बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या: समाज ने पिछले 5-6 सालों से लगातार बांग्लादेशी अवैध घुसपैठियों द्वारा प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों पर अवैध हड़पांतरण का मुद्दा उठाया है, जिस पर प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठाए गए। समाज ने घुसपैठियों की जांच कर उन्हें वापस भेजने की मांग की।
सर्व आदिवासी समाज ने स्पष्ट किया कि वे इन मुद्दों पर शासन-प्रशासन से साफ-साफ बात करना चाहते हैं और इन विषयों पर गहन चिंतन-मनन कर रहे हैं।
इस दौरान सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष जग्गूराम तेलामी, कमलेश पैंकरा, सीताराम मांझी, पाण्डुराम तेलाम, विनीता बघेल, श्रवण सैंड्रा, मंगू लेकाम, सतीश मंडावी सहित अन्य समाज प्रमुख मौजूद थे।