कांग्रेस की न्याय यात्रा: बस्तर के हक के लिए 40 किलोमीटर की पदयात्रा, जल-जंगल-जमीन की रक्षा का संकल्प – देखें वीडियों

दंतेवाड़ा (प्रभात क्रांति),छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में जल, जंगल, जमीन और खनिज संसाधनों के निजीकरण के खिलाफ कांग्रेस पार्टी की चार दिवसीय “न्याय यात्रा” दंतेवाड़ा जिला कलेक्टर कार्यालय के घेराव के साथ समाप्त हुई। किरंदुल से 26 मई को शुरू हुई यह 40 किलोमीटर लंबी पदयात्रा, छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज के नेतृत्व में आयोजित की गई, जिसमें दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर के सैकड़ों ग्रामीणों ने हिस्सा लिया। इस यात्रा का उद्देश्य बस्तर के प्राकृतिक संसाधनों को निजी उद्योगपतियों के हाथों में जाने से बचाने और स्थानीय आदिवासी समुदाय के हक की रक्षा करना था।
यात्रा का उद्देश्य और संदेश”
जल, जंगल, जमीन बचाओ” के नारे के साथ शुरू हुई यह यात्रा बस्तर के आदिवासी समुदाय की चिंताओं को सामने लाने का एक सशक्त प्रयास थी। कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की डबल इंजन सरकार बस्तर के खनिज संसाधनों, विशेष रूप से नगरनार स्टील प्लांट, को निजी हाथों में सौंपने की साजिश कर रही है। दीपक बैज ने कहा, “बस्तर की धरती और इसके संसाधन यहाँ के लोगों की पहचान हैं। इन्हें कॉर्पोरेट्स को सौंपना आदिवासियों के साथ अन्याय है। हमारी यह यात्रा सरकार को चेतावनी है कि हम अपने हक के लिए लड़ेंगे।”
यात्रा का सफर: किरंदुल से दंतेवाड़ा तक
न्याय यात्रा 26 मई को किरंदुल से शुरू हुई, जहाँ दीपक बैज ने मां दंतेश्वरी का आशीर्वाद लेकर इस अभियान की शुरुआत की। पहले दिन यात्रा किरंदुल से शुरू होकर धुरली तक पहुंची। दूसरे दिन धुरली से पातररास तक का सफर तय किया गया। तीसरे दिन यात्रा पातररास में रुकी, और चौथे दिन, 29 मई को, पातररास से दंतेवाड़ा के राजीव भवन तक पहुंची। इसके बाद सभी कार्यकर्ता और ग्रामीण दंतेवाड़ा कलेक्ट्रेट परिसर पहुंचे, जहां घेराव के साथ यात्रा का समापन हुआ।
इस यात्रा में सैकड़ों ग्रामीणों के साथ-साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शामिल हुए। 27 मई को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बचेली में यात्रा में हिस्सा लिया और सरकार की नीतियों की आलोचना की। उन्होंने कहा, “भाजपा सरकार बस्तर के संसाधनों को अपने उद्योगपति मित्रों को सौंप रही है। यह यात्रा न केवल बस्तर के लोगों की आवाज है, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए एक संदेश है कि हम अपने अधिकारों के लिए एकजुट हैं।” समापन के दिन पूर्व विधायक देवती कर्मा ने भी हिस्सा लिया और आदिवासी समुदाय के हक की लड़ाई को और मजबूत करने का आह्वान किया।
यात्रा का प्रभाव और विश्लेषण
न्याय यात्रा ने न केवल बस्तर के स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया, बल्कि कांग्रेस को आदिवासी समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने का अवसर भी प्रदान किया। बस्तर, जो अपनी प्राकृतिक संपदा और खनिज संसाधनों के लिए जाना जाता है, लंबे समय से निजीकरण और पर्यावरणीय शोषण के मुद्दों से जूझ रहा है। नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण इस क्षेत्र में एक ज्वलंत मुद्दा रहा है, और कांग्रेस ने इस यात्रा के माध्यम से इसे जन-आंदोलन का रूप देने की कोशिश की।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत पार्टी छत्तीसगढ़ में 2023 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद अपनी जमीनी उपस्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। बस्तर जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में इस तरह के आंदोलन कांग्रेस को स्थानीय समुदाय के बीच विश्वास बहाल करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, यह यात्रा बीजेपी सरकार पर दबाव बनाने का एक प्रयास भी है, खासकर तब जब देश में आर्थिक असमानता और निजीकरण जैसे मुद्दे चर्चा में हैं।
स्थानीय समुदाय की भागीदारी
यात्रा में दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर के सैकड़ों ग्रामीणों की भागीदारी ने इस अभियान को और प्रभावी बनाया। आदिवासी समुदाय के लोगों ने इस दौरान अपनी चिंताओं को व्यक्त किया, जिसमें जमीन छीने जाने का डर, रोजगार की कमी, और पर्यावरणीय नुकसान शामिल थे। एक स्थानीय ग्रामीण, रमेश कोर्राम ने कहा, “हमारी जमीन और जंगल हमारी आजीविका हैं। अगर इन्हें निजी कंपनियों को दे दिया गया, तो हमारा जीवन संकट में पड़ जाएगा।”
विपक्ष और सरकार की प्रतिक्रिया
हालांकि, बीजेपी ने इस यात्रा को राजनीतिक स्टंट करार दिया है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस बस्तर के विकास में बाधा डालने की कोशिश कर रही है। एक बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण से क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आर्थिक विकास होगा। कांग्रेस केवल राजनीति कर रही है।”
इसके जवाब में दीपक बैज ने कहा, “हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह विकास स्थानीय लोगों के हित में होना चाहिए, न कि कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के लिए।”
आगे की राह
न्याय यात्रा का समापन दंतेवाड़ा कलेक्ट्रेट के घेराव के साथ हुआ, लेकिन कांग्रेस ने संकेत दिए हैं कि यह आंदोलन यहीं खत्म नहीं होगा। दीपक बैज ने कहा, “यह केवल एक शुरुआत है। हम बस्तर के हर गांव और हर जिले में जाएंगे और लोगों को उनके अधिकारों के लिए जागरूक करेंगे।” पार्टी ने यह भी घोषणा की कि वह भविष्य में इसी तरह के अभियानों को पूरे छत्तीसगढ़ में आयोजित करेगी।
निष्कर्ष कांग्रेस की न्याय यात्रा ने बस्तर के जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में ला दिया है। यह यात्रा न केवल एक राजनीतिक कदम है, बल्कि आदिवासी समुदाय की आवाज को बुलंद करने का एक प्रयास भी है। भूपेश बघेल और देवती कर्मा जैसे नेताओं की मौजूदगी ने इस अभियान को और मजबूती दी। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह यात्रा बस्तर और छत्तीसगढ़ की राजनीति को किस दिशा में ले जाती है।
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