ग्राम पंचायत ऊलनार में सुशासन तिहार समाधान शिविर का आयोजन, मुख्य अतिथि सांसद महेश कश्यप रहे मौजूद, जनसमस्याओं का हुआ त्वरित निराकरण पर जनप्रतिनिधि की उपेक्षा से छाया असंतोष… देखें वीडियों :-

जगदलपुर (प्रभात क्रांति)। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में प्रदेशभर में सुशासन तिहार-2025 का आयोजन किया जा रहा है । इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य प्रदेश में जनसमस्याओं का त्वरित समाधान, जनकल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत बनाना है। यह तिहार तीन चरणों में संचालित हो रहा है-
- प्रथम चरण 08 अप्रैल से 11 अप्रैल तक जनता से आवेदन प्राप्त किए गए।
- दूसरा चरण एक माह के भीतर प्राप्त आवेदनों का निराकरण।
- तीसरा चरण 05 मई से 31 मई तक समाधान शिविरों का आयोजन।
इसी कड़ी में 11 मई को बस्तर जिले के जनपद पंचायत बकावण्ड अंतर्गत ग्राम पंचायत ऊलनार में समाधान शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण जन उपस्थित हुए। शिविर में विभिन्न विभागों के अधिकारियों द्वारा शिकायतों के निराकरण की प्रक्रिया संचालित की गई, हालांकि कुछ समस्याओं का निराकरण अभी भी लंबित है।
शिविर में मुख्य अतिथि सांसद महेश कश्यप, जिला पंचायत सदस्य बनवासी मौर्य, भाजपा जिला अध्यक्ष वेद प्रकाश पाण्डे, मण्डल अध्यक्ष पुरुषोत्तम जोशी, सरपंच, सचिव, जनपद पंचायत अध्यक्ष और संबंधित विभागों के अधिकारीगण उपस्थित रहे।
लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि…
जिला पंचायत सदस्य बनवासी मौर्य, जिनके क्षेत्र के सैकड़ों ग्रामीण समाधान शिविर में उपस्थित थे, उन्हें मंच से बोलने का अवसर ही नहीं दिया गया । इस बात को लेकर श्री मौर्य ने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर की और इसे भारतीय जनता पार्टी के अपमानजनक रवैये से जोड़ते हुए इसे जनप्रतिनिधियों के मान-सम्मान की अवहेलना बताया ।
स्थानीय ग्रामीणों में भी इस घटना को लेकर असंतोष देखा गया । लोगों का कहना था कि जिस प्रतिनिधि ने वर्षों से उनके क्षेत्र में काम किया, उसकी आवाज को ही मंच से बाहर कर देना न केवल अनुचित है, बल्कि लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन भी है।
बात यहीं खत्म नहीं होती
सूत्रों के अनुसार, बनवासी मौर्य जब जिला पंचायत सदस्य के पद से जीतकर आए, तो उन्होंने उपाध्यक्ष पद के लिए दावेदारी पेश की थी। इसी को लेकर पार्टी में मतभेद हुए और भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें 06 वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया। अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस राजनीतिक पृष्ठभूमि के चलते ही उन्हें मंच से दूर रखा गया?
इस घटना ने न केवल मौर्य के समर्थक, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों के बीच भी नाराजगी फैला दी है। लोगों का मानना है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में निर्वाचित जनप्रतिनिधि की आवाज को दबाना न केवल असम्मान है, बल्कि जनविश्वास के साथ भी अन्याय है।
इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब जनप्रतिनिधियों की बात मंच पर नहीं सुनी जाएगी, तो आम जनता की समस्याओं को कैसे पूरी गंभीरता से सुना और सुलझाया जाएगा ?
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