बस्तर में पत्रकारिता करना बन रहा जोखिम भरा काम, मुकेश चन्द्राकर की बेरहमनी से की गई हत्या, पत्रकारों द्वारा दी गई भावपूर्ण श्रद्धांजली, दोषियों को फांसी देने की मांग…….
जगदलपुर(प्रभात क्रांति) । बस्तर संभाग जो प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण होने पर बस्तर में नक्सली, ठेकेदार और दलाल द्वारा भ्रष्टाचार चलम पर है। इन सब के बीच यहां के पत्रकार जोखिम उठाते हुए अपना सामाजिक सरोकार पूरा कर रहे हैं। इसके बावजूद नक्सलियों और ठेकेदारों द्वारा पत्रकारों की हत्या, उनकी पिटाई, धमकी और गांजा प्रकरण में इन्हें फंसाने का मामला बदस्तूर जारी है। इन सब के बीच पत्रकार सुरक्षा कानून थोथा साबित हो रहा है।
इधर जिला बीजापुर के पत्रकार साथी मुकेश चंद्राकर के मुत्यु के मुख्य आरोपी सुरेश चन्द्राकर, महेन्द्र एवं दिनेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है मुकेश चंद्राकर और रितेश चंद्राकर रिश्ते में भाई लगते थे तथा पारिवारिक एवं सामाजिक विषयों को लेकर आपस में बातचीत होते रहती थी । इसी दौरान आरोपी रितेश चंद्राकर द्वारा मृतक स्व0 मुकेश चंद्राकर से पारिवारिक सबंध होने के बावजूद हमारे कामधाम में सहयोग की बजाय बाधा डालने की बात को लेकर बहस हुई । इस दौरान आरोपी रितेश चंद्राकर द्वारा सुनियोजित तरीके से बाड़े में उपस्थित उनके सुपरवाईजर महेन्द्र रामटेके के साथ मिलकर मुकेश चंद्राकर के सिर, छाती, पेट एवं पीठ पर लोहे के रॉड से वार किया । दोनो आरोपियों के द्वारा किये गये हमले से मुकेश चंद्राकर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई । मृत्यु के पश्चात उसके शव को ठीकाने लगाने के उद्देश्य से शरीर को पास के सेप्टीक टेंक में डाल दिया एवं उसे स्लेब के ढक्कन से बंद कर दिया । हत्या इतना बेरहमनी तरीके से किया गया कि मुकेश चंद्राकर के लीवर के 04 टुकड़े, 05 पसलियां टूटी, सिर में 15 फैक्चर, हार्ट फटा और गर्दन टूटी हुई मिली डॉक्टरों ने कहा कि अपने 12 वर्ष के करियर में ऐसी हत्या नही देखी ।
बस्तर में जितनी ज्यादा खूबसूरती फैली है उतनी ज्याद ही अनियमितताएं भी व्याप्त है। ऐसी परिस्थिति के बीच पत्रकार कैसे काम करता होगा। अंदाजा लगाया जा सकता है। नक्सलियों और उनके पोषकों द्वारा पत्रकारों की हत्या की गई हैं। तोंगपाल के पत्रकार नेमीचंद जैन और बासागुड़ा के पत्रकार सांई रेड्डी की हत्या इसके उदाहरण हैं। उधर ठेकेदारों द्वारा भी बस्तर के पत्रकार हत्या भी होते रहे हैं। कोंडागांव के संजीव बक्शी नारायणपुर के मोहन राठौर और बीजापुर के मुकेश चंद्राकर की हत्या इसके प्रमाण है। इनकी हत्या को भले ही आपसी रंजिश बताया गया, पर वे थे तो पत्रकार। राजनीतिक संरक्षण में ठेकेदारों पत्रकारों के घर में घुसकर मारपीट करने का मामला भी बस्तर में हो रहा है। केशकाल के पत्रकार हरिलाल शार्दुल और कांकेर के कमल शुक्ला और भैरमगढ़ के पत्रकार की खुलआम पिटाई को बस्तर मीडिया भूली नहीं है।
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पत्रकारों को मारपीट के साथ जान से मारने की धमकी लंबे समय से दी जा रही है। राजनीतिक संरक्षण में जगदलपुर के कथित ठेकेदार द्वारा पत्रकार हेमंत कश्यप और नारायणपुर के रवि साहू के साथ भी यह हादसा हो चुका है। धमकी के कई मामले विभिन्न थानों में दर्ज भी है। इसके बावजूद पत्रकारों को धमकाने का कुकृत्य जारी है।
इधर पत्रकारों के खिलाफ सीधी कारवाई के बदले इन्हें गांजा – छेड़छाड़ आदि के मामले में फंसाने की घटनाएं भी होती रही हैं। कांकेर के एक पत्रकार को पखांजूर में और दंतेवाड़ा के पत्रकार बप्पी राय और उनके तीन साथियों को तेलंगाना के चट्टी में फंसा कर जेल भेजा गया। यह मामला ताजा उदाहरण हैं।
पत्रकारों को नक्सलियों का समर्थक बता कर परेशान करने की बात भी बस्तर में लगातार होती रही है। कोंडागांव के प्रेमराज कोटरिया, बीजापुर के कमलेश पैकरा का मामला भी सभी जानते हैं। इसी तरह नक्सलियों द्वारा बीजापुर के गणेश मिश्रा और सुकमा के लीलाधर राठी को भी जान से मारने की धमकी नक्सलियों द्वारा दी जा चुकी है। उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए ही लंबे समय से पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने और बस्तर के पत्रकारों को विशेष सुरक्षा देने की मांग लंबे समय से की जा रही हैं। सरकारें आ जा रही हैं, किंतु इस दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है ।